एक बार फिर



खुद को उठाने के चक्कर मे कितना गिरा दिया।
ये कैसी लपेटों से हमने खुद को घिरा दिया।।
अपना हक समझ कर गए थे हम उसके दर पर।
सुलझाने चले थे दूसरों को खुद को ही उलझा लिया।।

एक बार फिर से ये क्या होने लगा है
किसी के न होने पर भी होने का अहसास होने लगा हे
अपने वजूद को बचाने की बहुत कोशिश करता हूँ लेकिन
ये है कि अब किसी और का होने लगा है

अब तो रात दिन बस आँखों मे वही घूमती है।
मेरे खयालों मे मानो वो मेरे माथे को चूमती है।।
एक बार देख लो उसे तो उसके बगैर कोई कैसे रहे।
वो तो एक परी है जो जमीन मे नहीं आसमान मे घूमती है।।

कुछ बेफिज़ूल की शर्तों से रिश्ते टूट गए।
जिन्हे हम अपना समझते थे वही हमसे रूठ गए।।
कभी अपने आप को ही सब कुछ समझ बैठे थे हम।

लेकिन उसके बगैर पहले अधूरे हुए और फिर टूट गए।।

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