भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार



भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है भ्रष्ट $ आचार। भ्रष्ट का मतलब होता है मलिन या गंदा और आचार का मतलब होता है व्यवहार। जिस व्यक्ति का व्यवहार गंदा हो जाता है वास्तव मे वही भष्टाचारी कहलाता हे। दूसरे शब्दों मे कहें तो भ्रष्टाचार एक ऐसा कीड़ा है जो मानव मष्तिष्क मे रहता है और मनुष्य को गंदा बनाता है। मेरे मानने मे जिस व्यक्ति के पास सवालों के जवाब नहीं होते या फिर जवाबों मे सफाई नही होती वो सभी भ्रष्ट होते हैं। जो व्यक्ति सच्चे और अच्छे व्यक्ति को देखकर घबराता है वही भ्रष्ट है। किसी का हक मारकर खाने वाला भ्रष्ट है, दूसरे के सपनों को नष्ट कर उन्हें अपने सपनों मे शामिल करने वाला भ्रष्ट है। भ्रष्टाचार एक दिमागी बीमारी है जब मनुष्य ऐसा हो जाता जैसे कि उसे ड्रग्स की लत लग गयी हो। जैसे ड्रग्स की लत वाले को यदि ड्रग्स ना मिले तो वो अपना आपा खो बैठता है और जो उसके सामने आता है उसे मिटाने की कोशिश करता है वही हाल भ्रष्टाचारी का भी होता है। पहले तो वो दूसरों का चुराता है और फिर उस चोरी से बचने के लिए और चोरियां करता है और यदि किसी ने उसे पकड़ लिया तो उसे जान से मारने की कोशिश करता है। ये बीमारी आज समाज मे इस कदर फैल गई है कि जिसकी दवाई अब असर ही नहीं करती और ऐसी असरदार दवाई भी बनाई नहीं जाती क्योंकि जो डॉक्टर इसकी दवाई बनाने की कोशिश करता है ये बीमारी उसी को जकड़ लेती है और उसे भी भ्रष्ट बना देती है अब वो बीमारी का इलाज नहीं कर पाता बल्कि धीरे-धीरे और बीमार होता जाता है। इस बीमारी ने आज ऐसी तबाही मचा रखी है इसकी वजह से लाखों करोड़ो लोग रोते हैं, बिलखते हैं, तड़पते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं जिनको वो सुनाने की कोशिश करते हैं वो पहले से ही बीमार पड़े हुए हैं। हमारे देश मे गरीब से गरीब और अमीर से अमीर आदमी इस बीमारी का शिकार है। गरीब आदमी अपनी गरीबी भगाने के लिए भ्रष्ट बनता है तो अमीर आदमी अपनी अमीरी बचाये रखने के लिए भ्रष्ट बनता है। मैने बहुत कम लोग देखें हैं जो इस बीमारी से बचे हुए हैं। लोग हमेशा मौके की तलाश मे रहते हैं कि किस तरह से ऊपर की कमाई का मौका मिले, कैसे उस पैसे को अपना बनायें जो उनका है ही नहीं। इस तरह की आदत होना स्वाभाविक भी है क्योंकि एक आदमी तो अमीर पर अमीर होता जाता है और दूसरा जहां का तहां रहता है। यदि एक आदमी एक कंपनी मे काम करता है और कंपनी का मालिक कंपनी की कमाई से 100 करोड़ का एक मकान बनाता है मुझे लगता है कि उस कंपनी के मजदूर की इतनी तो औकार होनी चाहिए कि वो कम से कम 10-15 लाख रूपये का मकान बना ले अपने लिए। यदि एक कंपनी का मालिक 70 लाख रूपये की गाड़ी मे घूमता है तो कंपनी के कर्मचारी की इतनी तो औकात होनी चाहिए कि वो अपने लिए 40-50 हजार रूपये की स्कूटी या मोटर साइकिल खरीद सके। थोड़ी खुशियाँ मजदूर को मिले तो कितना अच्छा होगा वही दो वक्त की रोटी खाकर सोना भी क्या जीना ऐसे मे काम करने का मजा नहीं आता। वो देखता है कि 12-12 घण्टे काम मै करता हूँ और शाम को रोटी भी ढंग की नहीं खा पाता और जो व्यक्ति तीन चार घण्टे काम देखने आता है वही सब कुछ है मै कुछ भी नहीं हूँ। मै कहता हूँ कर्मचारी कम रखो लेकिन उनकी कद्र करो। एक आदमी जो तुमने रखा हुआ है वो दूसरे को सहन नहीं करता क्योंकि दूसरे के सामने उसकी पोल पट्टी खुल जाएगी। पुराना आदमी नये आदमी को या तो अपनी तरह भ्रष्ट बनाने की कोशिश करता है या फिर निकालने की। कोई भी बड़ा आदमी हो छोटे को अपने इशारों पर चलाना चाहता है या फिर धक्के मारकर बाहर निकालना चाहता है क्योंकि उसका दिल और दिमाग साफ नहीं। दिमाग भ्रष्ट हो तो वो व्यक्ति हर ईमानदार आदमी को देखकर डरता है और यदि दिलो दिमाग मे ईमानदारी छाई हो तो वो किसी से नहीं डरता यहाँ तक कि मौत से भी नहीं। ऑफिस को साफ करना इतना जरूरी नहीं होता है जितना कि कर्मचारियों के मन मष्तिष्क को साफ करना जरूरी होता है। किसी सच्चे और अच्छे व्यक्ति की ऐंसी भी क्या बददुआ लेनी जो शहर के शहर तबाह कर दे। इसलिए काम ऐंसा करो कि दुआ मिले न कि श्राप। जय हिन्द। 

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