जिन्दगी



जिन्दगी



डरी-डरी सहमी हुई सी जिन्दगी।
कभी भागती दौड़ती तो कभी थमी सी जिन्दगी
कभी तेज धूप मे सूखी हो जैसे तो
कभी ओंस बूंदों की नमी सी जिन्दगी

आसमान की ऊँचाइयों को छूती हुई तो
कभी पंख कटी सी जिन्दगी
कभी अपने आप मे पूर्ण होती है तो
कभी लाखों मे बंटी सी जिन्दगी।।

कभी सुन्दरता की मूरत हो जैसे और
कभी लगे बदसूरत सी ये जिन्दगी
कभी समुन्दर सी गहरी हो मानो तो
कभी सुखे तालाब सी जिन्दगी।।

जिन्दगी को वश करना अपने वश कहाँ
इसकी डोर को थामना अपने वश कहाँ
अपना वश तो बस अपने कर्म पर होता है
उसके फल पर वश करना अपने वश कहाँ।।

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