आखिर क्यों

आखिर क्यों

काश कि कोई दिल की धड़कनें सुन सके।
अपने-पराये मे फर्क पहचान सके।।
हम तो उनके दिल मे धड़कन बनकर रहते हैं।
काश कि कोई इतनी सी बात जान सके।।

तुम्हे देखे मानो एक जमाना हो गया।
तुम्हे देखना जैसे जीने का एक बहाना हो गया।।
अब जीने के लिए हमे कुछ तो करना पड़ेगा।
तुम्हे देखने के लिए थोड़ा दर्द तो सहना पड़ेगा।।

अहंकार है या फिर हंकार कुछ भी समझ नहीं आता
कई साये पीछे पड़े हैं हमारे और कुछ किया नहीं जाता।।
न चाहते हुए भी कभी-कभी जंग हो जाती है।
ऐसी ही शक्तियाँ जिन्दगी से उसका हर रंग ले जाती है।

कुछ नहीं है हमारे पास बस ये माटी की काया है।
फिर भी न जाने क्यों दुष्मन हुआ हर साया है।।
खुद दो पल के सुकून के लिए तरसते हैं हम।
लोग लूटने चले हैं कि न जाने हमने कितना कमाया है।।है।।है।।है।।

इक सुकून की तलाश मे हम निकल पड़े।
वो मिलेगी मुझे इसीलाििए फरयदी लाइन मे खड़े।।
वो मिले तो जिन्दगी संवर जायेगी।
जी उठेंगे हम फिर से जब भी वो आयेगी।।आयेगी।।

लिया करो खबर कि हम कैसे हैं।
बदल गए हैं थोड़े से या पहले जैसे हैं।।
हर बदलाव के पीछे कोई तो वजह होती है।
खुशनशीब होती है वो, जो बदलाव की वजह होती है।

खुदा का वास्ता है उन्हें कि हमे खुदा न माने।
हम ता इंसानो मे हैं, हमे खुद से जुदा न माने।।
यूँ दूर रहकर हमसे हम पर ये कैसा जुलम किया।
न आँख मिलाई न दिल आखिर किया तो क्या किया।।

मुस्कुराओ कि मुस्कुराते हुए आप अच्छे लगते हैं।
आप मुस्कुरा दो तो रात मे तो क्या दिन मे भी तारे जगते हैं।
मानो अपनों की तलाश मे जनमों से भटक रहे थे हम।
बस इतना समझ लो कि बेगानों मे आप हमे अपने से लगते

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