दिल की आवाज



दिल की बात उससे कैसे कहूँ
अब उसके बगैर रहूँ तो कैसे रहूँ।
कभी शर्म तो कभी धर्म सामने आ जाता है।
कुछ इसी तरह से हर कोई मुझसे दूर चला जाता है।

पास होकर भी दूर है कोई।
आँखों मे आँसू लिए मजबूर है कोई
क्यों वो खुदा इस दूरी को घटा नहीं पाता
क्यों चाँद के सामने से बादलों को हटा नहीं पाता। 

डसकी बातों में एक ताजगी है
डसके चेहरे मे एक सादगी है
जरा ध्यान रखो कि उसे कोई ठेस न लगा सके।
संभाल के रखो उसे वो एक कांच की गुड़िया सी है।।

रोम-रोम मे मानो उसके ईश्वर बसा हो।
चेहरा ऐंसा कि मानो चंदा हँसा हो।।
दैवीय गुणों का भण्डार सी लगती है वो मुझे।
मासूम सी है लेकिन मानो उसमे कई बोतलों का नशा हो।।

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